Sunil Shetty listens to Murari Bapu’s Katha at Nathdwara Festival 2 !

 

Sunil Shetty listens to Murari Bapu’s Katha at Nathdwara Festival 2 !
Sunil Shetty’s spiritual side was again visible when he spent quality time hearing Murari Bapu’s talk on truth, love and kindness, that is based on his Ramkatha.
Sunil Shetty spent time like one of the common men in a over one lakh fifity thousand crowd and heard bapu. “I heard a lot about bapuji from my friend Madan Paliwal,” said Sunil. “?But hearing him transported me to a different world altogether.”

मुरारी बापू इन नाथद्वारा कार्यक्रम
प्रेम इक्कीस वीं सदी का मूल मंत्र – मुरारी बापू
फिल्म स्टार सुनील शेट्टी ने लिया आशीर्वाद
नाथद्वारा। मिराज गु्रप द्वारा आयोजित रामकथा के दूसरे दिन बापू ने हनुमान स्तुति व रामधून के साथ कथा प्रारंभ की। इससे पूर्व बापू के मंच पर आने व व्यासपीठ पर विराजने के दौरान शंखनाद हुए। शंख की ध्वनि के साथ ही मिराज सीएमडी बापू को व्यासपीठ तक लाए। बापू व्यासपीठ को प्रणाम कर विराजित हुए। साथ ही हनुमान चालिसा की गुंज से पांडाल गुंज उठा। कथा के शुभारंभ में पं. रामचन्द्र दिक्षित के मंत्रोच्चार के बीच सीएमडी मदनलाल पालीवाल, पुत्र मंत्रराज पालीवाल तथा पुत्री माधवी पालीवाल के साथ आरती उतारी। मुरारी बापू इन नाथद्वारा कार्यक्रम में रविवार रात को सांस्कृति कार्यक्रम में प्रस्तुति देने वाले कलाकर एवं फिल्म स्टार बापू से आशीर्वाद लेने मंच पर पहुंचे। सीएमडी पालीवाल फिल्म स्टार सुनील शेट्टी, बांसूरी वादक बलजींदर सिंह, निलेश भारती एवं प्रिंस गु्रप के कलाकारों को व्यासपीठ तक लाए। अतिथियों ने बापू व व्यासपीठ का आशीर्वाद लिया व पुष्प अर्पित किए। बापू ने कहा कि भगवान शिव की तीन आंखे है। दांयी आंख सत्य की आंख है, बांयी करूणा की आंख है, बीच की आंख प्रेम की आंख है जो अग्निरूपा है । प्रेम आग है, सूर्य जलाता है पर दूर है, चांद भी शीतलता देता है पर दूर है पर प्रेम हमारे अंदर है।  परमात्मा सब जगह समान रूप से व्याप्त है। वह केवल प्रेम से प्रकट हो सकता है। जो होता है वही प्रकट होता है। कौशल्या के महल में परमात्मा का प्रकटन था इसलिए भय प्रकट कृपाला। प्रेम हम सभी में है जैसे आत्मा, मन, बुद्धि, अहंकार, ज्ञान, आनंद, परमात्मा सब में है। उसी तरह प्रेम भी सब में है। सारा संसार प्रेम से बना है। प्रेम इक्कीस वीं सदी का मूल मंत्र है। उन्होंने चेताया कि यहां प्रेम की वार्ता हो रही है वासना की नहीं, उपासना की चर्चा है। प्रेम की कुछ परिभाषाएं है एक प्रेम विकृत होता है उसमें भीषणता होती है, बदला, प्रतिशोध की भावना होती है। एक प्रेम सुसंस्कृत होता है ,शालीनता से भरा हुआ, मर्यादाओं से सुशोभित, एक दम सात्विक, सामने जाओं तो सम्पूर्ण सुरक्षा हम भी यहां ऐसे सात्विक प्रेम की चर्चा करेंगे। जो हमारी वासना को दूर कर दें।   बापू ने कहा कि हम सभी को अपना-अपना आत्म दर्शन करना चाहिए। हम असत्य क्यों बोल रहे है। कई बार पस्थितीवश, आर्थिक कारणों से, जिम्मेदारी के चलते या कहीं दबाव में आदमी असत्य बोलता है। असत्य आता है तो प्रेम प्रकट नहीं होता है। प्रेम किसी भी पस्थिती में आदमी को प्रसन्न रखता है। जितनी कम मात्रा में झूठ होगा प्रसन्न होने के अवसर उतने ही बढेंगे। जिसे सभी दु:खों से मुक्त होना है वह प्रसन्न रहे। जब परस्पर प्रेम बढेगा तो प्रसन्नता भी बढेगी।
प्रसाद व्यक्ति को निरोगी रखता है:- बापू ने कहा कि भुखे भजन न होए गोपाला। आयोजक की ओर से आयोजित भोजनशाला में प्रसाद ग्रहण करने का सभी श्रद्धालुओं से आग्रह करते हुए बापू ने व्यासपीठ से कहा कि प्रसाद ग्रहण पर ही कथा श्रवण की पूर्णता मानी जाती है। प्रसाद उसे कहते है जो आदमी को स्वस्थ्य रखें। प्रसाद मन व चित को स्थिर कर देता है, प्रसाद व्यक्ति को निरोगी रखता है। सभी को रामरसोडे में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। बापू ने कथा के दौरान एक संदर्भ में कहा की अंधेरी गुफा में जब मोमबत्ती का प्रकाश होता है तो अंधेरे का नाश नहीं होता बल्कि अंधेरा स्वयं प्रकाश हो जाता है। उसी तरह सतपुरूषों के संग में दुर्जनों का नाश नहीं होता वे स्वयं सतपुरूष बन जाते है।